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आलू की फसल

आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने का रामबाण उपाय

भारत में बदले मौसम के तेवर रबी फसलों से प्रत्यक्ष तौर पर जुड़े होते हैं। आलू की फसल झुलसा रोग के मामले में काफी संवेदनशील है। बतादें, कि कोहरा, बादल और बूंदाबांदी मौसम के बदले मिजाज में आलू की फसल झुलसा रोग के प्रति संवेदनशील होती है। आलू की खेती में लगने वाली ज्यादा लागत एवं रोग से संभावित भारी नुकसान के मद्देनजर कृषक रोकथाम के उपाय करें। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बारिश, बादल और तापमान में आई अप्रत्याशित गिरावट एवं कोहरे के कारण महज आलू की ही नहीं बल्कि अन्य फसलों जैसे कि टमाटर, लहसुन और प्याज की फसल को भी नुकसान संभव है। बढ़वार रुकने के साथ-साथ रोगों के प्रति संवेदनशीलता भी बढ़ जाती है। वर्तमान में आलू की फसल पछेती झुलसा (लेट ब्लाइट) के प्रति संवेदनशील है। इसका प्रकोप ऊपर की पत्तियों से चालू होता है। प्रारंभिक समय में किनारे की पत्तियां काली होती हैं। तीव्रता से इसका संक्रमण संपूर्ण पत्तियों और तने से होकर कंद तक पहुंच जाता है। ये अगैती झुलसा से ज्यादा खतरनाक है। समय रहते इसकी रोकथाम ना होने पर 2-3 दिन में पूरी फसल चौपट हो सकती है।

झुलसा रोग की इस तरह रोकथाम करें 

किसान मैंकोजेब के साथ कार्बेडाजिम का छिड़काव करें। प्रति लीटर पानी में दवा का अनुपात 2.5 से 3 ग्राम तक रखें। पहले रक्षात्मक छिड़काव के पश्चात आवश्यकता हो तो दो सप्ताह के पश्चात दूसरा भी छिड़काव करें।

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माहू का नियंत्रण कैसे करें 

आज के मौसम में सब्जियों के साथ-साथ सरसों में भी माहू और इससे होने वाले विषाणु जनित रोगों के संक्रमण की संभावना होती है। प्रकोप होने पर पत्तियां मुड़कर मोटी और कड़ी हो जाती हैं। पौध का विकास और बढ़वार रुक जाता है एवं पैदावार प्रभावित हो जाती है। इसके नियंत्रण के लिए मेटासिस्टाक्स 1.5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें। पाले से संरक्षण करने के लिए खेत में नमी बनाए रखें। आप मैंकोजेब का भी छिड़काव कर सकते हैं।

सब्जियों की अन्य फसलों पर भी मौसम का असर होगा 

अगर मौसम खराब रहा तो ऐसे में प्याज, लहसुन का विकास रुक जाता है। अधिकतर प्याज की रोपाई हो चुकी है अथवा नर्सरी में है। यदि प्याज की रोपाई करनी है, तो बेसल ड्रेसिंग में बाकी उर्वरकों के साथ प्रति एकड़ 10 किग्रा गंधक का भी इस्तेमाल करें। इफ्को का बेंटानाइट सल्फर एक शानदार उत्पाद है। नर्सरी में यदि गलन की दिक्कत है, तो मैंकोजेब, कार्बेडाजिम एवं सल्फर का छिड़काव करें। विशेषज्ञों के मुताबिक 18:18:18 (घुलनशील उर्वरक) का छिड़काव भी बेहतर बढ़वार में मददगार है। कम तापमान के चलते लहसुन के कंद छोटे हो सकते हैं। इसके लिए 13:0: 45 का छिड़काव करें। एक लीटर पानी में 10 ग्राम खाद डालें। इसमें 6 मिलीग्राम स्टीकर मिलाने से नतीजे बेहतर होंगे। सब्जियों में ऐसे मौसम में आए फल-फूल गिर जाते हैं। ये बने रहें इसके लिए सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें।
आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

आलू उत्पादक अपनी फसल को झुलसा रोग से कैसे बचाएं ?

किसानों को खेती किसानी के लिए मजबूत बनाने में कृषि वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कड़ी में ICAR की तरफ से आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए एडवाइजरी जारी की है। कृषकों को सर्दियों के समय अपनी फसलों का संरक्षण करने के उपाय और निर्देश दिए गए हैं। 

आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए महत्वपूर्ण समाचार है। यदि आप भी आलू का उत्पादन करते हैं, तो इस समाचार को भूल कर भी बिना पढ़े न जाऐं।  क्योंकि, यह समाचार आपकी फसल को एक बड़ी हानि से बचा सकता है। दरअसल, सर्दियों के दौरान कोहरा कृषकों के लिए एक काफी बड़ी चुनौती बन जाता है। विशेष रूप से जब कड़ाकड़ाती ठंड पड़ती है। इस वजह से केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान मोदीपुरम मेरठ (ICAR) ने आलू की खेती करने वाले किसानों के लिए एक एडवाइजरी जारी की है।

ICAR की एडवाइजरी में क्या क्या कहा गया है ?

ICAR की इस एडवाइजरी में कृषकों को यह बताया गया है, कि वे अपनी फसलों को किस तरह से बचा कर रख सकते हैं। कुछ ऐसे तरीके बताए गए हैं, जो कि सहज हैं और जिनसे आप अपनी फसलों को काफी सुरक्षित रख सकेंगे। यदि किसान के पास सब्जी की खेती है, तो उसे मेढ़ पर पर्दा अथवा टाटी लगाकर हवा के प्रभाव को कम करने पर कार्य करना चाहिए। ठंडी हवा से फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचती है। इसके अतिरिक्त कृषि विभाग की तरफ से जारी दवाओं की सूची देखकर किसान फसलों पर स्प्रे करके बचा सकते हैं। सर्दियों में गेहूं की फसल को कोई हानि नहीं होती है। हालांकि, सब्जियों की फसल काफी चौपट हो सकती है। ऐसी स्थिति में कृषकों को सलाह मशवरा दिया गया है, कि वह वक्त रहते इसका उपाय कर लें।

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किसान भाई आलू की फसल में झुलसा रोग से सावधान रहें 

ICAR के एक प्रवक्ता का कहना है, कि आलू की खेती करने वाले कृषकों के लिए विशेष सलाह जारी की गई है। इसकी वजह फंगस है, जो कि झुलसा रोग या फाइटोथोड़ा इंफेस्टेस के रूप में जाना जाता है। यह रोग आलू में तापमान के बीस से पंद्रह डिग्री सेल्सियस तक रहने पर होता है। अगर रोग का संक्रमण होता है या वर्षा हो रही होती है, तो इसका असर काफी तीव्रता से फसल को समाप्त कर देता है। आलू की पत्तियां रोग के चलते किनारे से सूख जाती हैं। किसानों को हर दो सप्ताह में मैंकोजेब 75% प्रतिशत घुलनशील चूर्ण का पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। अगर इसकी मात्रा की बात करें तो यह दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के तौर पर होनी चाहिए।

आलू की खेती में इन चीजों का स्प्रे करें

प्रवक्ता का कहना है, कि संक्रमित फसल का संरक्षण करने के लिए मैकोजेब 63% प्रतिशत व मेटालैक्सल 8 प्रतिशत या कार्बेन्डाजिम व मैकोनेच संयुक्त उत्पाद का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी या 2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में 200 से 250 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इसके अतिरिक्त, तापमान 10 डिग्री से नीचे होने पर किसान रिडोमिल 4% प्रतिशत एमआई का इस्तेमाल करें। 

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अगात झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नामक फफूंद की वजह से होता है। इसकी वजह से पत्ती के निचले भाग पर गोलाकार धब्बे निर्मित हो जाते हैं, जो रिंग की भांति दिखते हैं। इसकी वजह से आंतरिक हिस्से में एक केंद्रित रिंग बन जाता है। पत्ती पीले रंग की हो जाती है। यह रोग विलंब से पैदा होता है और रोग के लक्षण प्रस्तुत होने पर किसान 75% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण, मैंकोजेब 75% प्रतिशत विलुप्तिशील पूर्ण या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% प्रतिशत विलुप्तिशील चूर्ण को 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर पर पानी में घोलकर छिड़काव कर सकते हैं। 

सर्दियों के दिनों में झुलसा रोग से बचाऐं आलू अन्यथा बर्बाद हो जाएगी फसल

सर्दियों के दिनों में झुलसा रोग से बचाऐं आलू अन्यथा बर्बाद हो जाएगी फसल

झुलसा रोग पौधों की हरी पत्तियों को पूर्णतया बर्बाद कर देता है। इस रोग के कारण पत्तियों के निचले भाग पर सफेद रंग के गोले का निशान पड़ जाता है, कुछ समय उपरांत पत्तियों में भूरे व काले निशान हो जाते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में मौसमिक प्रभाव होने लगें है। विशेषकर आलू का पछेती उत्पादन करने वाले उत्पादक कृषक आलू की फसल को पाले से प्रभावित होने से बचाने में असमर्थ हो जाते हैं। इस परिस्थिति में तत्काल समुचित उपाय करें जिससे कि आलू का बेहतर उत्पादन हाँसिल कर सकें। यदि समय से सही उपाय न किया गया तो पत्तियां बहुत जल्दी नष्ट हो जाएँगी। आलू की फसल में नाशीजीवों (खरपतवारों, कीटों व रोगों ) से करीब 40 से 45 प्रतिशत तक नुकसान होता है। भारत के वरिष्ठ फसल वैज्ञानिक डॉक्टर एसके सिंह ने बताया है, कि यह पछेती झुलसा रोग फाइटोपथोरा इन्फेस्टेंस नाम के फफूंद की वजह से उत्पन्न होता है। साथ ही, आलू का पछेती अंगमारी रोग फसल के लिए अत्यंत हानिकारक साबित होता है। आयरलैंड देश में प्रचंड अकाल जो कि वर्ष 1845 में हुआ था। उसकी मुख्य वजह यह पछेती अंगमारी रोग ही था। बतादें, कि वातावरण में नमी और प्रकाश बेहद कम हो और बहुत दिनों तक बारिश अथवा बारिश की भाँति वातावरण होता है, ऐसी स्थिति में इस रोग की मार पौधे की पत्तियों से आरंभ होती है। बतादें, कि इस रोग की वजह 4 से 5 दिनों के मध्य पौधों की समस्त हरी पत्तियाँ पूर्णतया बर्बाद हो जाती हैं।


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डाक्टर सिंह का कहना है, कि पत्तियों के संक्रमित होने की वजह से आलू के उत्पादन में कमी आने के साथ आकार भी छोटा हो जाता है। आलू के बेहतर उत्पादन हेतु 20-21 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अच्छा होता है।आर्द्रता आलू की वृद्धि में सहायता करती है। तापमान और नमी पछेती झुलसा के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। बीजाणु बनाने की प्रक्रिया (स्पोरुलेशन) 3-26 डिग्री सेल्सियस (37-79 डिग्री फारेनहाइट) से हो सकती है। परंतु अधिकतम सीमा 18-22 डिग्री सेल्सियस (64-72 डिग्री फारेनहाइट) है। आलू के सफल उत्पादन हेतु जरुरी है, कि इस रोग के संबंध में जाने एवं इसके समुचित प्रबंधन हेतु जरुरी फफुंदनाशक पूर्व से खरीद कर रख लें और समयानुसार इस्तेमाल करें। ध्यान रहे यह रोग लगने के उपरांत किसानों को इतना वक्त नहीं मिलेगा की उत्पादक इससे बच सकें। डॉक्टर एसके सिंह के अनुसार, जब तक आलू की फसल में इस रोग का संकेत नहीं दिखाई पड़ता है, जब तक मैंकोजेब युक्त फफूंदनाशक 0.2 फीसद की दर से मतलब दो ग्राम दवा प्रति लीटर जल में मिश्रण कर छिड़काव कर सकते हैं। परंतु एक बार रोगिक लक्षण के बारे में पता चलने के उपरांत मैंकोजेब फफूंदनाशक के छिड़काव का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। इसलिए किसान इस बात का बेहद ध्यान रखें कि जब भी खेतों में रोगिक लक्षण दिखाई दें, तुरंत साइमोइक्सेनील मैनकोजेब दवा को 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर जल में मिश्रण कर छिड़काव करें। इसी तरह फेनोमेडोन मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति लीटर जल में मिलाकर छिड़काव करें। मेटालैक्सिल और मैनकोजेब मिश्रित दवा की 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर जल में मिलाकर फसल पर छिड़काव कर सकते हैं। अनुमानित, एक हेक्टेयर में 800 से 1000 लीटर दवा के मिश्रण की जरुरत होगी। लेकिन छिड़काव करते वक्त किसान पैकेट पर दिए गए सारे निर्देशों का बेहद सजगता से निर्वहन करें अन्यथा दुष्परिणाम भी झेलना पड़ सकता है।
इन राज्यों के आलू उत्पादन से बिहार के आलू किसानों की आई सामत

इन राज्यों के आलू उत्पादन से बिहार के आलू किसानों की आई सामत

भारत के उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल में आलू की पैदावार का हर्जाना बिहार के किसानों को वहन करना पड़ रहा है। आपको बतादें, कि बिहार में उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल का आलू सस्ता होने की वजह से देशवासी बिहार के आलू को खरीद नहीं रहे हैं। भारत के ज्यादातर इलाकों में रबी सीजन की विशेष फसलों में से एक आलू की खुदाई चालू हो गई है। किसान भाई उत्पादन का फायदा प्राप्त करने हेतु फसल विक्रय के लिए मंडी के चक्कर काट रहे हैं। विभिन्न राज्यों में बेहतर भाव पर किसान भाई आलू की फसल का विक्रय भी कर रहे हैं। परंतु, बिहार राज्य में किसानों को आलू विक्रय करने पर काफी हानि उठानी पड़ रही है। यहां के किसान भाई मंडी में आलू का विक्रय करने के लिए पहुंचते हैं। हालाँकि, कारोबारी किसानों की तरफ से निर्धारित किए गए भावों से अत्यंत कम भाव पर आलू खरीदे जा रहे हैं। इसकी वजह से किसानों को लाखों रुपये की हानि का सामना किया जा रहा है।
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वास्तविक, रूप से इस वक्त बिहार की मंडियों में पश्चिम बंगाल सहित बाकी के राज्यों से भी आलू की आवक हो रही है। हालाँकि, इन सब में पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश का आलू बेहद ही सस्ते भाव पर मिल रहा है। बिहार राज्य की मंडियों में उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल के आलू का भाव प्रति क्विंटल 560 से 570 रुपये तक है। वहीं, बिहार राज्य के आलू की कीमत 600 से 700 रुपये प्रति क्विंटल पर बने हुए हैं। इन राज्यों की कीमतों में 200 रुपये प्रति क्विंटल तक अंतर देखा जा रहा है। इस वजह से लोग बिहार राज्य के आलू को खरीदना पसंद नहीं कर रहे।

किसान फसल की लागत तक ना निकलने पर बेहद चिंतित

किसानों ने बताया है, कि एक बोरी आलू के उत्पादन में 2600 रुपये तक की लागत लगी है। जबकि, खर्च केवल 2400 रुपये तक ही प्राप्त हो रहा है। प्रत्येक बोरी पर 200 रुपये की हानि देखने को मिल रही है। आलू की फसल पर हुए खर्च एवं बिक्री में इतना फरक होने की वजह से किसान लागत तक निकालने में असमर्थ हैं। किसानों ने बताया है, कि अगर स्थानीय आलू की कीमत नहीं बढ़ी तो प्रति क्विंटल अत्यधिक हानि होगी।

किसान आलू को कोल्ड स्टोरेज में रखने लायक स्थिति में भी नहीं हैं

जानकारों ने बताया है, कि बिहार राज्य में आलू के भाव की यह स्थिति है, कि किसान भाई कोल्ड स्टोरेज में आलू रखने का व्यय तक भी स्वयं वहन करने में असमर्थ हैं। कोल्ड स्टोरेज में एक क्विंटल आलू रखने के लिए किसान 280 रुपये प्रति क्विंटल का किराया देते हैं। बिहार शरीफ में 13 कोल्ड स्टोरेज उपस्थित हैं। इस कोल्ड स्टोरेज की आलू रखने की क्षमता 15 लाख क्विंटल है। परंतु, किसानों के आलू कोल्ड स्टोरेज में न रख पाने की वजह से यह शीतगृह बिल्कुल सुमसान पड़े हैं। कोल्ड स्टोरेज संचालकों को इससे भी बेहद हानि का सामना करना पड़ रहा है।
ठंड के कारण बर्बाद हो रही है, किसानों की फसलें, जाने कौन-कौन सी फसल को है नुकसान

ठंड के कारण बर्बाद हो रही है, किसानों की फसलें, जाने कौन-कौन सी फसल को है नुकसान

इस बार सर्दियों ने पिछले कई सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड से लोग परेशान हैं। साथ ही, यह फसलों के लिए भी बेहद हानिकारक साबित हो रही हैं। किसान अपनी बर्बाद हो रही फसलों को लेकर बेहद परेशान हैं। किसान इस भारी ठंड में भी दिन-रात जागते हुए अपनी फसलों की निगरानी कर रहे हैं। लेकिन फिर भी पाला फसलों को बर्बाद कर रहा है। उत्तर भारत में ज्यादातर नुकसान आलू की फसल को हुआ है। लेकिन अभी एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है। पाले से इस बार फूलों वाली खेती पर भी बेहद बुरा प्रभाव पड़ रहा है। मौजूदा समय में हो रही फूलों वाली फसलों को भी नुकसान हो सकता है। किसानों को सावधानी बरतने की जरूरत है।

फूलों वाली फसलों को हो रहा नुकसान

बहुत ज्यादा कोहरा और पाला पड़ने के कारण सभी फसलें ठंड की चपेट में आ रही हैं। लेकिन फूलों वाली फसल में झुलसा रोग हो रहा है, जो पूरी तरह से फूलों वाली फसल को बर्बाद कर रहा है। यह रोक लगने के बाद फसल पूरी तरह से सूख कर बर्बाद हो जाती है। कोहरा और पाला अधिक पड़ने से फसलें अधिक ठंड की चपेट में आ गई हैं। झुलसा रोग फसलों को अधिक चपेट में ले रहा है। झुलसा रोग लगने से फसलें सूख जाती हैं। इससे किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हो रहा है। सरसों व राई की फसल फूलों वाली फसल होती है। विशेषज्ञों का कहना है, कि इस सीजन में इन फसलों पर माहू कीट और सफेद गेरूई का असर दिख रहा है। इसका असर फूल पर भी पड़ता है और फूल सूख जाता है। इससे सरसों और राई का उत्पादन घट जाता है।

इस रोग की चपेट में आ रही चने की फसल

चने की फसल के लिए कटवा कीट और बुकनी रोग बहुत ही हानिकारक होता है। चने की फसल में यह दोनों ही रोग देखने को मिल रहे हैं। फूल आने के समय फसल सूखने से किसानों का उत्पादन शत प्रतिशत घट जाता है। इस समय यही स्थिति बनी हुई है। किसान अपनी पूरी की पूरी फसल बर्बाद होने के कारण बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना कर रहे हैं और आगे चलकर उन्हें आर्थिक मंदी का सामना भी करना पड़ रहा है।


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आलू की फसलों को भी हो रहा नुकसान

आलू के लिए ज्यादा ठंड कभी भी सही नहीं रहती है और इस बार की ठंड के कारण इसका सीधा असर आलू की खेती पर देखा जा रहा है। कृषि एक्सपर्ट का कहना है, कि अगर अगले 15 दिन तक भी ऐसी ही कड़ाके की ठंड पड़ी तो आलू की फसल को और भी ज्यादा नुकसान होने का खतरा है।
सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

सावधान: पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आने वाले दिनों में ऐसा मौसम रहने वाला है

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान के अनुसार, आने वाले दिनों में हल्के से मध्यम बादल छाए रहने के कारण हल्की बारिश की संभावना है। अधिकतम और न्यूनतम तापमान 22.8-25.1 और 8.0-11.8 डिग्री सेल्सियस के बीच है। सापेक्ष आर्द्रता अधिकतम और न्यूनतम सीमा 70-95 और 40-70% के बीच है। हवाओं की दिशा पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम और हवाओं की गति 6.3-11.9 किमी प्रति घंटा रहने की संभावना है। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू, सरसों, सों चना, मटर आदि फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों के लिए अलग-अलग अथवा उपकरणों को साफ पानी से धोकर ही प्रयोग करें। कीटनाशी, रोगनाशी एवं खरपतवार नाशी रसायनों का छिड़काव हवा के विपरीत दिशा में खड़े होकर छिड़काव या बुरकाव न करें। छिड़काव यथा सम्भव हो तो सायंकाल के समय करें, छिड़काव के बाद खाने-पिने से पूर्व हाथों को साबुन या हैंडवाश से अच्छी तरह से धो लेना चाहिए तथा कपड़ो को धोकर नहा लेना चाहिए।

फसल व बागवानी से जुड़ी जानकारी

  1. गेंहू

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे गेहू की फसलों में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। बिलम्ब से बोई गई गेहूं की फसल में यदि सकरी व चौड़ी पत्ती वाले, दोनों प्रकार के खरपतवार दिखाई दें। तो इसके नियंत्रण हेतु सल्फोसल्फुरान 75% डब्लू पी ३३ ग्राम/हेक्टेयर या मैट्री ब्यूजिन 70 %डब्लू पी 250 ग्राम / हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
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  1. सरसों

वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे सरसों की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दे। आसमान में लगातार बादल छाए रहने के कारण सरसों की फसल में माँहू, चित्रित वग एवं पत्ती सुरंगक कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। अतः इसके रोकथाम हेतु क्लोरपायरीफास 20 % ईसी 1.0 लीटर/हेक्टेयर या मोनोक्रोटोफॉस 36 % एस.एल. की 500 मिली० /हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. चना

समय से बोई गई चने की फसल में खुटाई का कार्य रोक दें। वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे चने की फसल में सिंचाई का कार्य स्थगित कर दें। कटुआ (कटवर्म) कीट का प्रकोप दिखाई देने की संभावना है। इसके रोकथाम हेतु क्लोरपाइरीफोस 50% ईसी + साइपरमेथ्रिन 5% ईसी 2.0 लीटर/हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें।
  1. आलू

वातावरण में नमी बढ़ने/बादल छाये रहने और तापक्रम गिरने से आलू की फसल में झुलसा रोग का प्रकोप तेजी से फैलता है। अतः इसके रोकथाम हेतु मैंको मैं जेब या रिडोमिल २.५ ग्राम/लीटर पानी अथवा कॉपर आक्सीक्लोराइड ३.० ग्राम/लीटर पानी का में घोल बनाकर १२-१५ दिन के अन्तराल पर छिड़काव आसमान साफ होने पर करें। आलू की फसल में सिचाई का कार्य स्थगित कर दें ।

पशु संबंधित सलाह

वर्तमान मौसम को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है, कि वे पशुओं को ठंड से बचाने के लिए सुबह-शाम पशुओं के ऊपर झूल डालें। जानवरों को रात के दौरान खुले में न बांधें और रात में खिड़कियों और दरवाजों पर जूट के बोरे के पर्दे लगाएं और दिन के दौरान धूप में पर्दे हटा दें। पशुओं को हरे और सूखे चारे के साथ पर्याप्त मात्रा में अनाज दें। पशुओ को साफ एवं ताजा पानी दिन में ३-४ बार अवश्य पिलायें। पशुओं को साफ-सुथरे स्थान पर रखें।